Shradhanjali Sandesh / Shok Sandesh

  • जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है
    Just as a man giving up old worn out garments accepts other new apparels, in the same way the embodied soul giving up old and worn out bodies verily accepts new bodies.

  • समस्त संसार के पालनहार तीन नेत्रो वाले शिव की हम आराधना करते है
    विश्व मै सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्यु न की मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं.

    We pray to Lord Shiva whose eyes are the Sun, Moon and Fire
    May He protect us from all disease, poverty and fear
    And bless us with prosperity, longevity and good health
     

  • तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं।
    इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो
    You have a right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to the fruits of actions
    Never consider yourself the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty.

  • पिता ही धर्म है, पिता ही स्वर्ग है

    पिता ही परम तप है

    पितृभक्ति हर भक्ति में श्रेष्ठ है

    पितृभक्ति देवताओ को भी प्रिय है

    शास्त्र में कहा गया यह विधान हमारे जीवन का मर्म है

    स्वर्ग की प्राप्ति धर्म से होती है, तप से होती है

    परंतु हमारे लिए हमारी पितृभक्ति ही हर भक्ति में श्रेष्ठ है

  • राम नाम में लीन है, देखत सब में राम।
    ताके पद वंदन करूं जय जय जय जलाराम।।

  • नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः। 
    नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥ 

    माता के समान कोई छाया नहीं,
    कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। 
    माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥
  • नास्ति मातृसमा छाया नास्ति मातृसमा गतिः। 

    नास्ति मातृसमं त्राणं नास्ति मातृसमा प्रपा॥


    माता के समान कोई छाया नहीं, 

    कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। 

    माता के समान इस विश्व में कोई जीवनदाता नहीं॥